कनाडा में मेरा दूसरा दिन था।
सारा दिन यूँ ही घर में पड़े-पड़े कट गया। नया देश, नया माहौल, और मन में ढेरों सवाल। बाहर जाने का मन नहीं था, लेकिन दिन जैसे रुक ही गया था। शाम के 8 बजे थे और सूरज वैसे ही चमक रहा था जैसे दोपहर हो — कनाडा की ये अजीब पर अद्भुत बात है।
बीवी ने कहा, "चलो थोड़ा बाहर टहल आते हैं, पास में ही एक पार्क है।"
हम दोनों घर से निकल पड़े। सड़क के किनारे-किनारे चलते हुए एक छोटे से बच्चों के पार्क तक पहुंच गए। कुछ बच्चे झूलों पर मस्त होकर खेल रहे थे, और उनके माता-पिता पास खड़े देख रहे थे। माहौल हल्का-फुल्का था, लेकिन मेरे अंदर अब भी कोई अजनबीपन बैठा था।
तभी नज़र एक बेंच पर बैठी एक बुज़ुर्ग महिला पर पड़ी। सूती सलवार-कमीज़, सिर पर हल्की सी चुन्नी, और साथ में एक वॉकर — उनके पहनावे और चेहरे की झुर्रियों से साफ़ लग रहा था कि वो भारत से हैं। शायद पंजाबी।
कुछ देर उन्हें देखते रहे, फिर खुद-ब-खुद पांव उनकी ओर मुड़ गए। "सत श्री अकाल," मैंने कहा।
उन्होंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, लेकिन उस मुस्कान में एक थकावट थी — जैसे वो सिर्फ औपचारिकता निभा रही हों। हमने वहीं बैठकर बात शुरू की। उन्होंने बताया कि वो 16 साल पहले अपने बेटे के पास यहां आई थीं।
लेकिन बातों-बातों में जो उन्होंने बताया, उसने दिल को झकझोर दिया।
बेटे ने भारत में शादी की थी। लेकिन बहू को सास का साथ एक पल भी मंज़ूर नहीं था। रोज़ के ताने, झगड़े, गालियाँ — यहां तक कि बहू ने कह दिया, "या तो ये रहेगी या मैं।"
घर का माहौल बिगड़ता गया। बात तलाक तक पहुँची। बहू दोनों बच्चों को लेकर अलग हो गई। बेटा टूटा, फिर दूसरी शादी कर ली।
अब नई पत्नी के भी दो छोटे बच्चे हैं। बेटा सुबह काम पर चला जाता है, और बहू अपने बच्चों में व्यस्त रहती है।
"मैं?" — उन्होंने गहरी सांस ली — "बीमार हूं बेटा, वॉकर के सहारे चलती हूं। दिल नहीं लगता, लेकिन घर में कोई बात तक नहीं करता।"
"सुबह-शाम इस पार्क में आ जाती हूं, बस थोड़ी हवा मिल जाती है। पेंशन आती है, यही सोचकर रुकी हूं कि बेटे को कुछ सहारा मिल जाए। इंडिया नहीं जा सकती, और जाऊं भी तो कितने दिन वहां टिक पाऊंगी? अब वहां भी अपने जैसे नहीं रहे।"
उनकी आँखें भर आईं। हम दोनों खामोश हो गए।
उस शाम, कनाडा की साफ़ हवा में एक दर्द घुला था — एक माँ का अकेलापन, एक बुज़ुर्ग की बेबसी, और एक ऐसी सच्चाई जो प्रवासी जीवन की चमक के पीछे अक्सर छिपी रह जाती है।
कनाडा की ज़िंदगी सुंदर है, लेकिन हर किसी के लिए नहीं। कुछ लोग यहां सिर्फ साँस लेते हैं, जीते नहीं।
क्या विदेश में बस जाना ही सफलता है? या अपनों का साथ ही असली सुख है?
ये सवाल अब भी मेरे ज़हन में गूंज रहा है।
No comments:
Post a Comment