✨ क्या हम सिर्फ मेहमान हैं या कनाडा के भविष्य का हिस्सा?
कनाडा दिवस की शाम थी। सड़कों पर लोग उमड़ आए थे — लाल-सफेद रंगों से सराबोर। बच्चे अपने चेहरे पर Maple Leaf का टैटू लगाए हुए, हाथों में झंडे थामे, एक नई दुनिया में गर्व से झूमते हुए। मैं भी अपने परिवार के साथ उस उत्सव में शामिल हुआ। और मैंने गौर किया — मैं अकेला नहीं था। हर गली, हर चौक पर कोई न कोई प्रवासी था — कोई भारत से, कोई पाकिस्तान से, कोई फिलीपींस, चीन या अफ्रीका से। सबने कनाडा को अपना लिया था।
लेकिन तभी एक सवाल भीतर से उठा —
"क्या हमने कनाडा को अपनाया है, या कनाडा ने भी हमें वैसे ही अपनाया है?"
"क्या हम यहाँ मेहमान हैं, या हम इस देश की भावी कहानी के लेखक हैं?"
🛤️ अतीत की यादें, वर्तमान की ज़मीन
हम पंजाब से आए, यूपी-बिहार से, बंगाल से, महाराष्ट्र से — अपने गांवों की मिट्टी, अपने त्यौहार, अपने रिश्तों को याद करते हुए। लेकिन अब, हमारे बच्चे कनाडा के स्कूलों में पढ़ते हैं, इंग्लिश में सोचते हैं, फ्रेंच में मुस्कराते हैं। हमने वतन को छोड़ा नहीं, उसे दिल में रखा — और कनाडा को जीना शुरू किया।
🇨🇦 कनाडा ने रास्ता दिया, लेकिन क्या दिल भी खोला?
सरकार ने स्वागत किया। काम दिया, सुविधा दी, नागरिकता दी। लेकिन समाज के हर हिस्से में स्वीकार्यता समान नहीं थी। कुछ लोग मुस्कराकर "हैलो" कहते हैं, कुछ तिरछी नज़रों से देखते हैं जैसे हम उनके हिस्से की हवा ले रहे हों।
क्या ये भावना हर जगह है? नहीं।
लेकिन क्या यह पूरी तरह मिट गई है? शायद नहीं।
🌾 हमारा योगदान सिर्फ संख्याओं में नहीं
हम कनाडा की GDP का हिस्सा हैं।
हम डॉक्टर हैं, ट्रक ड्राइवर हैं, टीचर हैं, बिल्डर हैं, आर्टिस्ट हैं।
हम टैक्स भरते हैं, नियमों का पालन करते हैं, और अपने बच्चों को अच्छे नागरिक बनने की तालीम देते हैं।
तो फिर सवाल ये नहीं है कि क्या हम कनाडा का हिस्सा हैं — सवाल यह है कि क्या हमें "दिल से" कनाडा का हिस्सा माना जाता है?
🪔 दो संस्कृतियों की जोत
हम दीपावली भी मनाते हैं, और कनाडा डे की आतिशबाज़ी भी देखते हैं।
हम बर्फ में भी चलते हैं और गर्मी में चाय भी पीते हैं।
हम न तो पिछला छोड़ पा रहे हैं, न नया पूरी तरह थाम पा रहे हैं — लेकिन हम दोनों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
🌍 अब सवाल है:
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क्या कनाडा हमें उतना ही अपनाता है जितना हम उसे?
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क्या हमारी पहचान अब सिर्फ "इमिग्रेंट" भर रह गई है या "सिटिज़न" की तरह सम्मान मिला है?
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और सबसे ज़रूरी — हमारे बच्चे क्या सिर्फ भाषा और संस्कृति खोकर 'कनाडाई' बनेंगे, या अपनी जड़ों के साथ उड़ान भरेंगे?
✍ निष्कर्ष:
हम अब मेहमान नहीं हैं।
हम इस देश की रसोई में रोटियाँ बेलते हैं, और संसद तक अपनी आवाज़ पहुँचा रहे हैं।
हम सिर्फ भाग नहीं ले रहे — हम कनाडा के भविष्य को आकार दे रहे हैं।
पर ये भविष्य तभी संपूर्ण होगा जब दोनों ओर से दिल खुले होंगे।
क्योंकि नागरिकता सिर्फ पासपोर्ट में नहीं होती —
वो तब मिलती है जब एक देश आपको कहता है — "You belong here."
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