बुधवार, 23 जुलाई 2025

हाँ-हाँ, खुश हैं...

"बच्चों की मर्ज़ी"

 गुरबचन सिंह ने अपने चश्मे को साफ करते हुए विंडो से बाहर देखा। टोरंटो की ये बर्फ़ उसे अब भी अजनबी लगती थी। पचहत्तर साल की उम्र में, जब आदमी अपने पुराने बिस्तर और चाय की प्याली से प्यार करने लगता है, उसे यहाँ आए हुए तीन साल हो चुके थे।

"पापा, आज डॉक्टर के पास जाना है," पुत्री सिमरन ने फोन पर कहा।

"हाँ बेटा," उन्होंने जवाब दिया, पर मन ही मन सोचा - ये डॉक्टर वाक्टर क्या जाने मेरी तकलीफ़? जिन शब्दों में मैं दर्द बयान नहीं कर सकता, उन्हें कैसे समझेंगे?

किचन में उनकी पत्नी प्रीतम कौर ने पराठे बना रही थीं। "सुनो, कल मोहल्ले वाले पंजाबी अंकल से मिलने चलना है," उन्होंने कहा।

"हाँ-हाँ, जाना है," गुरबचन सिंह ने कहा, हालांकि उन्हें पता था वो 'मोहल्ला' नहीं, बस एक अपार्टमेंट बिल्डिंग का लॉबी था जहाँ कभी-कभी प्रवासी पंजाबी बुजुर्ग जमा हो जाते थे।

डॉक्टर के क्लिनिक में नर्स ने फॉर्म दिया। "सर, आपको इंग्लिश में भरना है,"

गुरबचन सिंह ने चश्मा लगाया। क्या भरूँ? कि जोड़ों का दर्द तो है ही, पर उससे ज़्यादा दिल में दर्द है - बच्चों के पास रहते हुए भी अकेलेपन का।

शाम को सिमरन ने पूछा, "पापा, क्या हुआ? आज आप चुप क्यों हैं?"

"कुछ नहीं बेटा... बस वो सोच रहा था, लुधियाने में आज शाम को हमारे पार्क में चर्चा हुई होगी..."

एक रविवार को बेटे ने घर पर बारबेक्यू का आयोजन किया। गोरे दामाद ने बड़े प्यार से कहा, "डैड, ट्राई दिस बर्गर!"

गुरबचन सिंह ने कौतुक से देखा - ये बर्गर वर्गर तो ठीक है, पर क्या कभी इसने मेरे हाथ का सरसों का साग चखा है?

उस रात प्रीतम कौर ने देखा - गुरबचन सिंह फोन पर पुराने गाँव वालों से बात कर रहे थे। "हाँ भाई... यहाँ तो सब ठीक है... बच्चों ने बड़ा अच्छा घर बना रखा है... हाँ-हाँ, खुश हैं..."

फोन रखते ही उनकी आँखें नम हो गईं। प्रीतम ने पूछा, "क्या हुआ?"

"कुछ नहीं... बस आज दिल कर रहा था, वो पुराने आँगन में लगे अमरूद के पेड़ की याद आ गई... जहाँ हमारे पोते-पोतियाँ खेला करते थे।"

प्रीतम ने उनका हाथ थाम लिया। "पर यहाँ तो हमारे बच्चे हैं न? उनकी खुशी के लिए ही तो आए हैं।"

गुरबचन सिंह ने खिड़की से बाहर टिम हॉर्टन्स की रोशनी देखी। सच है... ये बच्चों का सपना था जिसे हमने अपना बना लिया। पर क्या सपनों की कीमत यादों से चुकानी पड़ती है?

यह कहानी हर उस भारतीय बुजुर्ग की आवाज़ है जो बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए अपनी सारी यादें पीछे छोड़ आया। कनाडा की ये सर्द हवाएँ उनके दिल की गर्मी को नहीं जीत पातीं, पर वो इस डर से कभी कह नहीं पाते कि कहीं उनकी खामोशी बच्चों के सपनों पर बोझ न बन जाए।

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हाँ-हाँ, खुश हैं...

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