किचन का स्लैब साफ़ करके जैसे ही रीमा ड्राइंग रूम में आई, देखा — सुरेश खिड़की के पास चुपचाप बैठे हैं।
कनाडा की ठंडी शाम और चाय का कप हाथ में… लेकिन चेहरे पर कोई शिकन सी थी।
रीमा ने पूछा —
"क्या हुआ? इतने ऑफ मूड क्यों हो आज?"
सुरेश ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन वो मुस्कान अधूरी थी।
धीरे से बोले —
"पता नहीं रीमा… आज मन कर रहा है कि कोई मुझसे बस बातें करे।
बैठें… और बात करें उन दिनों की, जब हम भारत में थे।
बिजली जाती थी, लेकिन दिल रोशन रहता था।
यहां आकर जो संघर्ष किया, वो सब…
बस कोई सुने, समझे… और हम खुल कर बोल पाएं।"
रीमा ने मुस्कुराते हुए कहा —
"तो आपकी ये इच्छा एक मिनट में पूरी कर देती हूं।"
सुरेश चौंके —
"अरे? वो कैसे?"
रीमा ने फोन उठाया और दिखाया —
"ये देखिए — ‘Maple के नीचे’ नाम का एक पेज है फेसबुक पर।
मैं फॉलो करती हूं।
इस पर जो कहानियाँ लिखी होती हैं न…
ऐसा लगता है जैसे कोई हमारे ही दिल से बात कर रहा हो।
कभी कोई मां अचार बनाते-बनाते अपनी बेटी की चिंता में खो जाती है,
तो कभी कोई बूढ़ा पिता कनाडा की सड़कों पर अकेले टहलता दिखता है…
ये सब पढ़कर लगता है — हम ही तो हैं वो।"
सुरेश ने फोन लिया, कहानियाँ पढ़ीं… और पहली बार दिल से मुस्कुराया।
धीरे से बोले —
"सच में रीमा… ये तो वही बातें हैं जो मैं कहना चाहता था…
पर शब्द नहीं थे।"
📱 और फिर उन्होंने भी “Maple के नीचे” को फॉलो कर लिया।
क्योंकि कुछ पन्ने सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं होते —
वो हमारे दिल की आवाज़ बन जाते हैं।
💬 अगर आप भी चाहते हैं कि कोई आपसे बात करे,
या आप भी अपनी दिल की बातें सुनना और कहना चाहते हैं —
तो एक बार जरूर आइए ‘Maple के नीचे’ पेज पर।
शब्द नहीं… रिश्ते जुड़ते हैं यहां।
कनाडा की ठंडी शाम और चाय का कप हाथ में… लेकिन चेहरे पर कोई शिकन सी थी।
"क्या हुआ? इतने ऑफ मूड क्यों हो आज?"
धीरे से बोले —
"पता नहीं रीमा… आज मन कर रहा है कि कोई मुझसे बस बातें करे।
बैठें… और बात करें उन दिनों की, जब हम भारत में थे।
बिजली जाती थी, लेकिन दिल रोशन रहता था।
यहां आकर जो संघर्ष किया, वो सब…
बस कोई सुने, समझे… और हम खुल कर बोल पाएं।"
"तो आपकी ये इच्छा एक मिनट में पूरी कर देती हूं।"
"अरे? वो कैसे?"
"ये देखिए — ‘Maple के नीचे’ नाम का एक पेज है फेसबुक पर।
मैं फॉलो करती हूं।
इस पर जो कहानियाँ लिखी होती हैं न…
ऐसा लगता है जैसे कोई हमारे ही दिल से बात कर रहा हो।
कभी कोई मां अचार बनाते-बनाते अपनी बेटी की चिंता में खो जाती है,
तो कभी कोई बूढ़ा पिता कनाडा की सड़कों पर अकेले टहलता दिखता है…
ये सब पढ़कर लगता है — हम ही तो हैं वो।"
धीरे से बोले —
"सच में रीमा… ये तो वही बातें हैं जो मैं कहना चाहता था…
पर शब्द नहीं थे।"
क्योंकि कुछ पन्ने सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं होते —
वो हमारे दिल की आवाज़ बन जाते हैं।
या आप भी अपनी दिल की बातें सुनना और कहना चाहते हैं —
तो एक बार जरूर आइए ‘Maple के नीचे’ पेज पर।
शब्द नहीं… रिश्ते जुड़ते हैं यहां।
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