रविवार, 13 जुलाई 2025

Appointment Only


 "ज़िंदगी अपॉइंटमेंट पर, मौत भी अपॉइंटमेंट से…"

हर काम के लिए अपॉइंटमेंट चाहिए यहां —
बैंक जाना है? पहले स्लॉट बुक करो।
गाड़ी की सर्विस? वेबसाइट खोलो, डेट ढूंढो।
बच्चे को टीका लगवाना है? अपॉइंटमेंट लो, वर्ना कोई नहीं देखेगा।
यहां तक कि अगर पेट में तेज़ दर्द हो रहा हो, तब भी…
डॉक्टर कहेगा — “कृपया अपॉइंटमेंट लो, अगला टाइम चार घंटे बाद का है।”

अब आप सोचिए, जब कोई ज़मीन पर लोट रहा हो,
जब चेहरे का रंग उड़ गया हो, और आँखें मदद माँग रही हों —
तो कोई कैसे कहे — "थोड़ा और सह लो… सिस्टम व्यस्त है।"

ऐसा ही हुआ मेरे छोटे भाई के साथ।
रात को अचानक पेट में मरोड़ उठा, शायद पत्थरी का दर्द था।
मैंने क्लिनिक फोन किया, वो बोले — “अभी नहीं, चार घंटे बाद आइए।”

चार घंटे!
उस दर्द में हर मिनट एक युग जैसा लगता है।
किसी तरह दर्द सहते, कराहते, गिनती गिनते डॉक्टर के पास पहुंचे —
उसने देखा, चार गोली दीं और बोला — "आराम करो।"

न दुआ मिली, न तसल्ली — बस टैबलेट और ठंडी-सी मुस्कान।
दर्द थोड़ा थमा,
लेकिन जो व्यवस्था का चेहरा दिखा… वो बहुत ठंडा था।

कनाडा में सिस्टम कागज़ों पर बहुत खूबसूरत है।
लाइनें छोटी हैं, पार्किंग साफ है, लेकिन…
हर चीज़ के पीछे एक मशीन खड़ी है —
जो इंसान की तकलीफ नहीं समझती,
केवल समय देखती है।

कुछ हफ्ते बाद एक और झटका लगा।
एक जानने वाले अंकल थे, बुज़ुर्ग, शरीफ, जीवन भर मेहनत की थी।
एक सुबह सांसें थम गईं।
घर में मातम, आँसू, और हर तरफ खामोशी।
पर जब अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू की गई,
तो फ्यूनरल होम ने कहा —
“Sorry, अगला उपलब्ध स्लॉट पंद्रह दिन बाद का है।”

पंद्रह दिन?
माँ का चेहरा पीला पड़ गया —
"बेटा, हमारे यहां तो अगले दिन सूरज उगने से पहले विदा दे देते हैं।
पंद्रह दिन तक ऐसे कैसे पड़ा रहेगा?"

लेकिन यही सच था।
पंद्रह दिनों तक वो देह फ्रीज़र में रही।
घर में रोज़ अगरबत्ती जली,
रोज़ शांति पाठ हुआ,
पर चिता नहीं जली।

रवि — जो सब कुछ संभाल रहा था —
हर दिन बस यही सोचता रहा कि
क्या आधुनिकता का मतलब यही है कि इंसान की अंतिम विदाई भी वेटिंग लिस्ट में हो?

हम भारत से आए हैं।
हमें आदत थी —
कि अगर दर्द है तो मोहल्ले का डॉक्टर बुला लिया,
पंडित जी फ़ोन पर कह देते, "आ रहा हूँ बेटा।"
कभी किसी ने ये नहीं कहा —
“सिस्टम व्यस्त है, पंद्रह दिन बाद आइए।”

यहां सब कुछ अपॉइंटमेंट से चलता है।
इंसान की तकलीफ, उसकी मौत, और उसका संस्कार…
सब शेड्यूल पर।

माँ ने उस दिन एक लाइन में सब कह दिया —
"बेटा, यहां की सड़कें साफ़ हैं,
पर रिवायतें बहुत ठंडी हैं।"

हम अब भी सोचते हैं —
क्या ये वही “अच्छा सिस्टम” है, जिसकी सब तारीफ करते हैं?
जहां ज़िंदगी भी स्लॉट में मिलती है,
और मौत भी बुकिंग के बाद विदा होती है?"

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